युवको को डरावनी बातें सुनने या पड़ने को ना मिले तो जीवन ज्यादा सुखी रह सकता है ! Explain by Dr.Puri


Puri Health Centre

विज्ञापनो ने युवकों को इस कदर गुमराह करके उनका जीवन नरक से बदतर बना दिया है। बड़े—बड़े विज्ञापन आदमी को रोगी बनाने के लिए दिए जाते है कि पढ़ो और रोगी बनो। उफ ये धोखेबाज, जो बीमारी है उसका इलाज नहीं और अज्ञानता को रोग बना दिया। इन विज्ञापनों में रोग बनाए जाते है। ये सारा दिन यही सोचते हैं कि लोगों की जेबे कैसे काटी जाए, समाज को रोगी बनाकर ये सिर्फ अपनी जेबे भर रहे है। लोगों को नकारात्मक बना रहे है, निक्म्मा बना रहे हैं। आदमी अपना रोग ठीक करवाने डाक्टर के पास जाता है, वहां वो सुनता है, दिल दहला देने वाली बातें, तंदुरूस्त आदमी को भंयकर रोग बताना, जिनका नाम किसी मैडीकल साइंस की किताब में नहीं होता। रोग ना होते भी दवाइया खा-खा कर परेशान, रूपया खराब।



 मनघडंत रोग, मनघडंत इलाज, ज्यादा से ज्यादा डर दिमाग मे बिठा देते है, क्योंकि जितना ज्यादा डरेगा उतने ज्यादा रूपये देगा। किसी से बात नहीं करना चाहता, किसी को बताना नहीं चाहता, उसकी इसी मजबूरी का फायदा उठाते है। हर रोज के विज्ञापनों का हज़ारों रुपये का खर्चा कहां से आता है और लोगों की जेब से ही निकलता है। रोग ज्यादा नहीं है तंदुरूस्त को रोगी बनाएंगे तो ही इतना भारी भरकम खर्चा निकलेगा। बेसिर पैर के विज्ञापन से अपने पर ही शंका होती है। शंका से परेशानी, परेशानी से आत्मविश्वास में कमी और भ्रम से भय होता है। इन विज्ञापनों में 100% शर्तिया इलाज, खुला चैलेंज, सारी उम्र दोबारा इलाज की जरूरत नहीं, रोग दोबारा इलाज होने पर इलाज फ्री, दवा का असर पहले दिन से, मर्दाना ताकत तीन दिन या सात दिन में, शाही इलाज, हर आयु में मर्दाना ताकत, संसार प्रसिद्ध, पक्का इलाज, नसों को लंबा करने वाली मशीन मुफ्त, बेसिर पैर के लुभावने, आकर्षित विज्ञापनो से लोगों को खूब मूर्ख बनाया जाता है। दूसरे रोगो के इलाज के ऐसे विज्ञापन नहीं होते।

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