Puri Health Centre विज्ञापनो ने युवकों को इस कदर गुमराह करके उनका जीवन नरक से बदतर बना दिया है। बड़े—बड़े विज्ञापन आदमी को रोगी बनाने के लिए दिए जाते है कि पढ़ो और रोगी बनो। उफ ये धोखेबाज, जो बीमारी है उसका इलाज नहीं और अज्ञानता को रोग बना दिया। इन विज्ञापनों में रोग बनाए जाते है। ये सारा दिन यही सोचते हैं कि लोगों की जेबे कैसे काटी जाए, समाज को रोगी बनाकर ये सिर्फ अपनी जेबे भर रहे है। लोगों को नकारात्मक बना रहे है, निक्म्मा बना रहे हैं। आदमी अपना रोग ठीक करवाने डाक्टर के पास जाता है, वहां वो सुनता है, दिल दहला देने वाली बातें, तंदुरूस्त आदमी को भंयकर रोग बताना, जिनका नाम किसी मैडीकल साइंस की किताब में नहीं होता। रोग ना होते भी दवाइया खा-खा कर परेशान, रूपया खराब। मनघडंत रोग, मनघडंत इलाज, ज्यादा से ज्यादा डर दिमाग मे बिठा देते है, क्योंकि जितना ज्यादा डरेगा उतने ज्यादा रूपये देगा। किसी से बात नहीं करना चाहता, किसी को बताना नहीं चाहता, उसकी इसी मजबूरी का फायदा उठाते है। हर रोज के विज्ञापनों का हज़ारों रुपये का खर्चा कहां से आता है और लोगों की जेब से ही निकलता है।...